कवितायेँ

छः दिसंबर

हम इंतज़ार नहीं करते
फिर भी, हर बरस आती है
हमारे लिए अवसाद, हताशा, अपमान की बरसी
उद्दंडता, निर्लज्जता, बेहयाई की बरसी

हम याद नहीं करते
फिर भी, हर बरस आकर
अहसास करा जाती है
कि कैसे टूटते हैं दिल
कैसे होती है विश्वास का कत्ल
जिसे बड़ी मुद्दत से संजोकर
बारीकी से एक धागे में पिरोकर
हजारों साल के लिए संरक्षित किया गया था

हम भूलना चाहते हैं
एक नये कल की आस में
मिटाना चाहते हैं अतीत के निशाँ
फिर भी हर बरस सुनाई जाती है
उन अनकिये गुनाहों की फेहरिस्त
जिनसे हमारा कोई लेना-देना नहीं

हमारा वजूद बना दिया गया कितना गैर-ज़रूरी
हम बार-बार
बताना चाहते हैं कि हमारी मौजूदगी
कोई ऐतिहासिक मजाक नहीं है भाई
हम सच में इस बगिया का हिस्सा हैं
मिटटी, हवा, पानी और धूप पर
उतना ही हक़ है हमारा
जितना कि तुम्हारा है.....

खोखले शब्द

आ रहे ढाढ़स बंधाने लोग
ऐसा नहीं कि निभा रहे हों रस्म
वे दिल से दुखी हैं
उतने ही डरे हुए भी
जितना कि हम हैं खौफ़जदा

आए हैं वे सभी लोग सांत्वना देने
जो धार्मिक हैं लेकिन धर्मांध नहीं
उनमें कई नास्तिक भी हैं
ये सभी दुखी हैं और डरे हुए भी
लेकिन हम समझें अगर
तो ये सभी शर्मिन्दा भी हैं
शर्मिन्दा इसलिए भी कि अब लगता है
बेशर्मी ही जीता करेगी हमेशा

हां, यह अलग बात है
कि अपनी ही आवाज़ उन्हें
बेजान सी लगती है

सांत्वना देने वाले भी
जैसे जानते हैं कितने
खोखले होते हैं शब्द


मैं इसे उम्मीद कहता हूँ...

कोई चीज़ है ऎसी
जो बार-बार तोड़े जाने की
ज़बरदस्त कोशिशों के बाद भी
टूटने नहीं दे रही
खंडित होने के लिए विवश वजूद को

दानिश्वर इसे जो कहें
मैं इसे उम्मीद कहता हूँ
बस, इसी उम्मीद के सहारे
कट जायेंगी काँटों भरी राहें
चाँदनी-बिना पथरीली पगडंडियाँ
तुम देखते रहना
चुपचाप...

मन की हारे हार है
मन है कि हारना नहीं चाहता
बेयारो-मददगार बचाए रखना अपना वजूद
मौत के कुंए में चक्कर लगाने वाले
मोटर-साइकिल चालक जैसा अभ्यस्त हो चुके हैं हम

बिना किसी निर्धारित पाठ्यक्रम के
बहुत लम्बे समय से ली जा रही है धैर्य की परीक्षा
और परीक्षा परिणाम घोषणा के पहले
एक नया प्रश्न-पत्र रख दिया जाता है सामने
अकबकाओ या भुनभुनाओ
उन नित नए अनगिनत सवालों के जवाब लिखते-लिखते
कई पीढियां गुज़र गई हैं भाई
न परीक्षा ख़त्म होती है
न सवालों की फेहरिस्त

समझदार लोग जानते हैं
सुहानुभूति भी रखते हैं
कुछ सहृदय दोस्त, परीक्षा-भवन तो छोड़ भी आते हैं
लेकिन इन परीक्षाओं से
इन अनगिनत सवालों से
कोई तो निजात दिलाओ
आओ भाई, आगे आओ
हमें बचाओ.....
कि ना-उम्मीदी अभी भी हमसे
एक बिलांग दूरी बनाये हुए है
बस, एक बिलांग...

खौफनाक मंज़र

ये मंज़र खौफनाक हैं
वाकई आपके लिए
जबकि इससे भी खौफनाक मंज़र
हमारे ख़्वाबों का हिस्सा हैं
इन ख्वाबों की ताबीर जानते हुए भी
हम हर दिन जीते हैं
हर रात मरते हैं

मार दिया जाना
जला दिया जाना
नहीं होता डरावना
सबसे डरावना होता है
कत्ल को तर्क-संगत बताना

हम किस विकसित समय में
जी रहे हैं दोस्त जहां हत्यारे
शौर्य-वीरता का प्रतीक बनने की
रखते हैं ख्वाहिश...

ये मंज़र कितना खौफनाक है
कि धमनियों में डर पेवस्त हो रहा है
नाउम्मीदी में बदलती जा रही हैं
कुछ और दिन सुरक्षित जी लेने की ख्वाहिशें....


पहले बहल जाता था दिल

पहले बहल जाता था दिल
मरहम के इक फाहे से भी
आज जाने क्या हुआ
लोग आए, सभी ने की दुवाएं भी
लेकिन दिल नहीं बहला
हरारत भी रही आई
कि घबराहट अब भी वैसी है

मुझे मालूम है ओ चारागर तुम भी
इधर कुछ खोए रहते हो
तुम्हारे इल्मो-हुनर पर भी
किसी ने कर दिया है कुछ
दवाएं बेअसर हैं अब।

ज़रा सोचो, ज़रा समझो
कोई तो राह निकलेगी
चलो फिर कोई नुस्खा
करें ईजाद कुछ ऐसा
कि जिससे इस जहां में फिर
भरोसा हो जाए खुद पर।।।।।

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