अक्ल वालों को अक्ल दे मौला 

इल्म वालों  को इल्म  दे मौला 
धर्म वालों  को   धर्म  दे  मौला 
और  थोड़ी  सी  शर्म  दे  मौला
        ----अनवर सुहैल 

बिलौटी : लघु-उपन्यास (pdf फ्री डाउनलोड करें)
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अनवर सुहैल

09 अक्टूबर 1964 को छत्तीसगढ़ के जांजगीर में जन्में अनवर सुहैल जी के अब तक दोउपन्यास , तीन कथा संग्रह और एक कविता संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं। कोल इण्डिया लिमिटेड कीएक भूमिगत खदान में पेशे से वरिष्ठ खान प्रबंधक हैं। संकेत नामक लघुपत्रिका का सम्पादन भी कररहे हैं।

अनवर सुहैल जी से मेरा पहला परिचय 'असुविधा' पत्रिका के माध्यम से हुआ ।उसके बाद से यत्र-तत्र मैं उनकी कविताएं पढ़ता ही रहा हूँ। उनकी कविताओं की सहज संप्रेषणीयताऔर नए जीवनानुभव मुझे आकर्षित करते रहे हैं। अब तक उनके तीन कविता संग्रह आ चुके हैं।उन्होंने अपनी कविताओं में बदलते समय और समाज की हर छोटी-बड़ी दास्तान और जीवन केविविध पहलुओं को दर्ज किया है पर मुझे उनकी कविताओं का सबसे प्रिय स्वर वह लगा जिसमें वेखादान जीवन से अनुस्यूत अपने अनुभवों को अपनी कविताओं की अंतर्वस्तु बनाते हैं। अनवर जी की इन कविताओं को पढ़ना कोयला खादानों से जुड़े अंचलों और उसके जन-जीवन से दो-चार होना है। कोयला खदानों में काम करने वाले मजदूरों का जीवन ,समाज , प्रकृति,मानवीय संवेदनाएं और उनके संघर्ष उनकी कविताओं में बहुत गहराई और व्यापकता से व्यक्त हुएहैं। ये कविताएं पाठक को एक नए अनुभव लोक में ले जाती और गहरे तक संवेदित करती हैं।मानसिक रूप से हम अपने-आप को उन अंचलों और वहाँ के निवासियों से जुड़ा महसूस करते हैं। फिरयह जुड़ना किसी स्थान विशेष या लोगों तक सीमित नहीं रह जाता है बल्कि समाज की तलछट में रहरहे श्रमरत मनुष्यों और उनकी पीड़ाओं से जुड़ना हो जाता है। इन कविताओं की स्थानीयता मेंवैश्विकता की अपील निहित है। खदानों के जीवन परिस्थितियों को लेकर इस तरह की बहुत कमकविताएं हिंदी में पढ़ने को मिलती हैं। छोटी-छोटी और सामान्य सी प्रतीत होने वाली घटनाओं में बड़ेआशयों का संधान करना इन कविताओं की विशेषता है। ये कविताएं पाठक से सीधा संवाद करती हैं ,इस तरह कविता में अमूर्तीकरण का प्रतिकार करती हैं। कहीं-कहीं वे अपनी बात को कहने के लिएअधिक सपाट होने के खतरे भी उठाते हैं। नाटकीयता उनकी कविताओं की ताकत है।
अनवर सुहैल कविता में संप्रेषणीयता के आग्रही रहे हैं।इसका मतलब यह कतई नहीं कि वहकविता के नाम पर सपाट और शुष्क गद्य के समर्थक हों। उनका मानना है कि गद्य लेखकों कीबिरादरी आज की कविता को 'कवियों के बीच का कूट-संदेश' सिद्ध करने पर तुली हुई है। यानी ये ऐसीकविताएं हैं जिन्हें कवि ही लिखते हैं और कवि ही उनके पाठक होते हैं।.....कवि और आलोचकों काएक अन्य तबका ऐसा है जो कविता को गूढ़ ,अबूझ , अपाठ्य ,असहज और अगेय बनाने की वकालतकरता है। वह प्रश्न खड़ा करते हैं कि किसी साधारण सी बात को कहने के लिए शब्दों की इस बाजीगरीको ही कविता क्यों कहा जाए? इसलिए अपनी कविताओं में वह इस सबसे बचते हैं।
लोकोन्मुखता उनकी कविता मूल स्वर है। लोकधर्मी कविता की उपेक्षा उनको हमेशासालती रही है। इसी के चलते उन्होंने 'संकेत ' पत्रिका का प्रकाशन प्रारम्भ किया। इस पत्रिका केमाध्यम से उनका प्रयास है साहित्य केंद्रों से बाहर लिखी जा रही महत्वपूर्ण कविता को सामने लायाजाय जिसकी लगातार घोर उपेक्षा हुई है। कठिन और व्यस्तता भरी कार्य परिस्थितियों के बावजूदअनवर लिख भी रहे हैं ,पढ़ भी रहे हैं और साथ ही संपादन जैसा थका देने वाला कार्य भी कर रहे हैं।यह सब कुछ वही व्यक्ति कर सकता है जिसके भीतर समाज के प्रति गहरे सरोकार समाए हुए हों।बहुत कम लोग हैं जो इतनी गंभीरता से लगे रहते हैं और दूरस्थ जनपदीय क्षेत्रों में रचनारत लोगों केसाथ अपने जीवंत संबंध बनाए रखते हैं।
पेशे से माइनिंग इंजीनियर अनवर सुहैल केवल कविता में ही नहीं बल्कि कथा के क्षेत्र मेंभी समान रूप से सक्रिय रहे हैं। कुछ वर्ष पूर्व राजकमल प्रकाशन से उनका 'पहचान' नाम से एकउपन्यास आया है। जो काफी चर्चित रहा है। इस उपन्यास के केंद्र में भी समाज के तलछट में रहनेवाले लोगों का जीवन है जो जीवन भर अपनी पहचान पाने के लिए छटपटाते रहते हैं। विशेषकर उनलोगों का जो धार्मिक अल्पसंख्यक होने के चलते अपनी पहचान को छुपाते भी हैं और छुपा भी नहींपाते हैं। यह कसमकस इस उपन्यास में सिद्दत से व्यक्त हुई है।
अनवर जितने सहज-सरस साहित्यिक हैं उतने ही सहज-सरस इंसान भी। उनसे मिलने याबात करने वाला कोई भी व्यक्ति उनके मृदुल व्यवहार का कायल हुए बिना नहीं रह सकता है।

-महेश चन्द्र पुनेठा (पुरवाई blog से)


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